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Home indian mythology

कंकालों की झील : Lake of Roopkund में किसके कंकाल हैं पता चल गया !

by Admin
April 20, 2022
in indian mythology
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Table of Contents

  • Roopkund Lake mystery
  • Story Related To Origin of Roopkund Lake ( रूपकुंड झील की उत्पत्ति) 
  • रूपकुंड झील में मानव कंकालों के होने से जुड़ी कहानियां Human Skeletons in Roopkund lake 
  • Roopkund Lake में मानव कंकालों से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य 

Roopkund Lake mystery

भारत का हिमालयी राज्य उत्तराखंड, यूँ तो असंख्य अनसुलझे रहस्यों से भरा पड़ा है लेकिन चमोली जिले में 16,470 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित रूपकुंड झील न सिर्फ अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है बल्कि यहां मिलने वाले हजारों रहस्य्मयी कंकालों के लिए भी जाना जाता है।  रूपकुंड झील, विश्वविख्यात नंदादेवी राजजात का प्रमुख पड़ाव है, नंदाघुंघटी और त्रिशूली जैसे विशाल हिम शिखरों की छांव में  अंडाकार आकृति वाली यह झील 12 मीटर लंबी, दस मीटर चौड़ी जबकि दो मीटर से अधिक गहरी ह।   हरे-नीले रंग की यह खूबसूरत झील साल में करीब छह महीने बर्फ से ढकी रहती है।

Story Related To Origin of Roopkund Lake ( रूपकुंड झील की उत्पत्ति) 

 

Lake of Roopkund की उत्पति के बारे में धार्मिक मान्यता है की एक बार जब भगवान शिव और देवी नंदा कैलाश जा रहे थे तो, देवी नंदा को प्यास लगती है लेकिन इस बर्फीले क्षेत्र में कहीं पानी नहीं मिलता।  जिसके बाद भगवान शिव ने अपना त्रिशूल धरती पर गाड़ दिया और वहां से कुंडाकार जलधारा फूट पड़ी। तब देवी नंदा ने कुंड से पानी पिया और उसके स्च्च्छ जल में स्वयं और शिव के रूप को एक साथ देख आनंदित हो उठी। तभी से यह कुंड रूपकुंड कहलाया।

रूपकुंड झील में मानव कंकालों के होने से जुड़ी कहानियां Human Skeletons in Roopkund lake 

रूपकुंड झील में मानव कंकालों के पाए जाने को लेकर अनेकों theories और कहानियां सुनने को मिल जाती हैं लेकिन यह तब चर्चाओं में आया जब 1942 में ब्रिटिश फॉरेस्‍ट गार्ड और नंदा देवी गेम रिज़र्व के रेंजर एच.के माधवल को यहां सैकड़ों मानव कंकाल और हाड़ियाँ मिलीं , इसे देख ब्रिटिश आर्मी ने यह कयास लगाया कि हो न हो यह सभी नर कंकाल जापानी सैनिकों है, जो द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत में ब्रिटेन पर आक्रमण करने के लिए हिमालय के रास्ते घुसते वक्त यहां किसी भयानक आपदा में मर गए होंगे। लेकिन जांच के बाद पता चला कि ये कंकाल जापानी सैनिकों के नहीं थे, बल्कि द्वितीय विश्व युद्ध से कहीं ज्यादा पुराने थे।

इसके बाद रूपकुंड के इस रहस्य से जुड़े दावों की मानो बाढ़ सी आ गयी।  हालांकि स्थानीय और पौराणिक कथाओं में इस स्थान का जिक्र कहीं बार आता है

एक किवदंती के अनुसार सदियों पहले एक बार एक राजा और रानी , देवी नंदा के दर्शन करने के लिए यहां जाते हैं लेकिन वो अकेले नहीं गए और अपने साथ नौकर-चाकर आदि ले कर जाते हैं यात्रा के मार्ग में खूब धमा-चौकड़ी मचाई। ये देख नंदा देवी गुस्सा हो गईं और उनका क्रोध भयंकर बिजली और तूफान बनकर उन सभी पर गिरा और वे वहीं बर्फ में दब कर मौत के मुंह में समा गए। कुछ लोग इस कथा को कन्नौज के राजा यशधवल से सम्बन्घित भी मानते हैं

वहीं एक अन्य कथा में माना जाता है की यह कंकाल हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले उन लोगो के पूर्वजों के हैं जहां मृत्यु के बाद मुर्दों को हिमकुण्डों में विसर्जित करने की परम्परा थीं।  इस बात को प्रमाणित करने के लिए साहित्यकार यमुना दत्त वैष्णव कहते हैं कि गढ़वाल के कुछ सीमांत गांवों में मुर्दो को ऊंचे-ऊंचे हिमकुंडों तक ले जाकर विसर्जित करने की प्रथा है। माणा गांव जो की 12 हजार फीट पर स्थित है,  के निवासी अपने मृतकों को सतोपंथ कुंड तक ले जाकर विसर्जित करते हैं। संभवतः रूपकुंड ऐसा ही श्मशान हो, जहां प्राचीनकाल में कत्यूर के लोग भी अपने मुर्दो को उनकी सद्गति के लिए हिमकुण्डों में विसर्जित करते हों।

जबकि कुछ लोगो का मनाता है की यहां मिलने वाले कंकाल उन लोगों के हो सकते हैं जो पूर्व में आयी किसी महामारी या असाध्य रोग से पीड़ित थे जिन्हे यहां एकांत के लिए छोड़ा गया हो।

इन सभी सदिओं पुरानी कहानियों और थ्योरी के अलावा कुछ हाल फिहाल के वर्षों की कहानियां भी है। एक थ्योरी के अनुसार ये मानव कंकाल 1841 के दौरान कश्‍मीर के जनरल जोरावर सिंह और उसके सैनिकों की है, जो तिब्‍बत युद्ध से लौट रहे थे और खराब मौसम की वजह से मारे गए।  वहीं कुछ इसे सिकंदर से जोड़ कर भी देखते हैं

Roopkund Lake में मानव कंकालों से जुड़े वैज्ञानिक तथ्य 

शुरुवात में अलग अलग थ्योरी और अनुमानों के बाद वैज्ञानिक इस निष्कर्ष तक पहुंचे की रूपकुंड में पाए गए कंकाल एक ही समय के नहीं थे बल्कि अलग अलग टाइम पीरियड्स के थे जो की अलग अलग नस्लों से सम्बंधित थे।

यहां सिर्फ नर कंकाल नहीं बल्कि महिलाओं और पुरुषों दोनों के कंकाल पाए गए हैं। जिनमे से अधिकतर कंकालों को साउथ ईस्ट एशिया , भारत या आसपास का बताया जाता है हालाँकि इनमे कुछ कंकाल चीन और ग्रीस के भी पाए गए हैं।  यहाँ पाए गए जो कंकाल भारत और आस-पास के इलाकों से सम्बन्धित थे  वो सातवीं से दसवीं शताब्दी के बताये जाते हैं.जबकि ग्रीस और आस-पास के इलाके वाले कंकाल सत्रहवीं से बीसवीं शताब्दी है।

वैज्ञानिकों ने यह भी दावा किया है की जांच में इन कंकालों में कोई बैक्टीरिया या बीमारी पैदा करने वाले कीटाणुओं के अवशेष नहीं मिले. हालाँकि यह भी संभव है की अब वे कीटाणु या विषाणु मौजूद न हो या बहुत काम मात्रा में हों।

खैर इन मानव कंकालों का वास्तविक राज जो भी हो लेकिन रूपकुंड आज भी सबसे खूबसूरत और रोमांचित करने वाले स्थानों में जाना जाता है यहां आने वाले शैलानियों के अनुभव आपको रोमांचित कर देंगे

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