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Kartik Swami Temple: भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिकेय क्यों रुठ कर विराजित हो गए थे Kartik Swami में

by Admin
April 15, 2022
in indian mythology
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क्या अपने कभी सोचा है की अगर किसी इंसान की खाल और हड्डियों को अलग अलग कर दिया जाये तो वो कैसे जिन्दा रह सकता है। लेकिन ये बातें हमारे उत्तराखंड में अजीब सी नहीं लगती।   जी हाँ उत्तराखंड में हजारों ऐसे ही रहस्य और लोक कथाएं हैं जो आपको आश्चर्य में डाल देंगी।

सीक्रेट्स ऑफ़ उत्तराखंड की इस सीरीज में आज हम बात करने वाले हैं , 3050 मीटर की ऊंचाई पर स्थित भगवान शिव के बड़े पुत्र कार्तिके के उस मंदिर के बारे में जिसके बारे में कहा जाता है की यहां भगवान कार्तिके अपने शरीर का मांस त्याग कर हडियों के ढांचे के रूप में विराजित हैं।

दोस्तों हम बात करेंगे की आखिर क्या वजह थी की  भगवान कार्तिके अपने शरीर का मांस त्याग दिया और इतनी ऊंचांई पर जा बसे।

Kartik Swami Temple की कहानी

कार्तिक स्वामी मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के एक छोटे से गांव कनक चौरी के पास स्थित है जो रुद्रप्रयाग-पोखरी मार्ग पर आता है।

भगवान कार्तिकेय को समर्पित, यह रहस्यमयी स्थान हिमालय के मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य के बीच स्थित है। इस रहस्यमयी मंदिर तक पहुंचने के लिए कनक चौरी गांव से 3 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी होती है।

हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, माना जाता है की एक बार भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय में इस बात को लेकर बहस हो गयी की किसे पहले पूजा जायेगा , जिसके फल स्वरुप दोनों भाई भगवान शिव के पास गए तो शिव ने उन्हें एक चुनौती दी जिसके अनुसार जो सबसे पहले ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करेगा उसको ही सबसे पहले पूजा जायेगा भगवान कार्तिक की मूर्ति यहां हड्डियों के रूप में दर्शायी गयी है।  भगवान कार्तिकेय को दक्षिण भारत में भगवान मुरगन के रूप में पूजा जाता है।

Kartik Swami Temple से शानदार सूर्योदय और दिल को छू लेने वाले सूर्यास्त के दृश्य वास्तव में दर्शनीय और रमणीय हैं।   शाम की प्रार्थना, मंत्रों का जाप और शानदार स्वच्छ वातावरण श्रद्धलुओं और पर्यटकों को इस स्थान की और आकर्षित करते हैं ।

मंदिर में भगवान कार्तिकेय की एक मूर्ति।  यहां कार्तिक पूर्णिमा और 11 दिनों की कैलाश यात्रा जैसे कुछ त्योहार और कार्यक्रम बहुत उत्साह के साथ मनाए जाते हैं।

यहां से बंदरपुंछ, केदारनाथ गुंबद, मेरु और सुमेरु, चौखंबा चोटी, नीलकंठ, द्रोणागिरी, नंदा घुंटी, त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत श्रृंखला की शानदार हिमालय की चोटियों को देखने का मौका मिलता है। . लुभावने नजारों और अवर्णनीय अहसास के अलावा, मंदिर की यात्रा बर्ड वॉचिंग, कैंपिंग और ग्रामीण पर्यटन का भी अवसर प्रदान करती है। यह स्थान धार्मिक आस्था और प्रकृति की अपार सुंदरता का अलौकिक संगम है।

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