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Dhari Devi Mandir की कहानी: एक ऐसा Mandir जहां स्वरुप बदलती है, माँ काली

Admin by Admin
April 15, 2022
in indian mythology
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Table of Contents

  • माँ धारी देवी की कहानी Story of Dhari Devi
  • 2013 की Kedarnath Apda से Dhari Devi से का क्या संबंध
  • Dhari Devi Mandir स्थापना से जुडी लोककथा 
  • कन्या स्वरुप में विराजित हैं माँ Dhari Devi

माँ धारी देवी की कहानी Story of Dhari Devi

2013 में आयी केदारनाथ आपदा को कोई कैसे भूल सकता है , हजारों जाने चली गयी तो न जाने कितनो ने मानसिक संतुलन खो दिया, इस आपदा के दंश को भूलना वास्तव में किसी के लिए भी आसान नहीं है।  लेकिन इस आपदा का कारण क्या था, इस सवाल का जवाब अलग अलग आधार पर दिया जाता रहा है , विज्ञानं इसे प्राकृतिक आपदा कहता है तो धार्मिक आस्था रखने वाले लोग इसे देव प्रकोप कहते हैं।  

 

2013 की Kedarnath Apda से Dhari Devi से का क्या संबंध

 

दरसल गढ़वाल क्षेत्र के श्रीनगर के नजदीक अलकनंदा नदी पर 330 MW की जल विद्युत परियोजना का कार्य चल रहा था जिसके कारण बनी झील से गढ़वाल की धात्री देवी, धारी देवी का मंदिर भी डूब रहा था।  जिसके समाधान के लिए प्रोजेक्ट पर काम कर रही कंपनी ने सुझाया की देवी के मंदिर को ठीक उसी स्थान पर झील की ऊंचाई से ऊपर उठा कर विस्थापित कर लिया जाये , जिसके फलस्वरूप Kedarnath Apda से ठीक एक दिन पूर्व ही ऐसा किया जाता है।  जबकि स्थानीय लोग इस बात के पक्ष में नहीं थे क्यूंकि की उनकी आस्था थी की ऐसा करने से देवी रुष्ट हो जाएँगी और उन पर देवीय प्रकोप होगा।  

 

हालांकि इस बात में कितनी भी आस्था और विश्वास ही क्यों न जुड़ा हो लेकिन लोगों की शंका एक दिन बाद ही सच में बाद जाती है। अब आप इस बात पर विश्वास करें या न करें लेकिन मानव के विज्ञान में इतनी तरक्की के बादवजूद भी आज भी हम प्रकृति का मुकाबला नहीं कर सकते हैं , लेकिन धार्मिक आस्था एक ऐसा हथियार रहा है जो मानव को हौसला और जज्बात देता रहा है। 

दोस्तों सीक्रेट्स ऑफ़ उत्तराखंड की इस कड़ी में हम बात करने वाले  गढ़वाल की धात्री देवी, धारी देवी के बारे , और उनसे जुड़े कहीं किस्सों और सच्ची घटनाओं पर 

 

आम तौर पर माँ काली के मंदिरों में विराजित माँ काली की प्रतिमा रौद्र रूप में दिखाई जाती है लेकिन धारी में विराजित माँ काली की मूर्ति एक मात्र ऐसी मूर्ति है जिसमे माँ काली को शांत स्वरुप में दिखाया जाता है , स्थानीय लोगों की मान्यता है की धारी देवी मंदिर में माँ दिन में तीन स्वरुप में नजर आती हैं।  इस मंदिर में रोजाना माता तीन रूप बदलती है। धारी देवी प्रात:काल कन्या, दोपहर में युवती व शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं। 


Dhari Devi Mandir स्थापना से जुडी लोककथा 


इस मंदिर की स्थापना को लेकर स्थानीय लोगों व पुजारियों की आस्था है की माँ काली की प्रतिमा यहां द्वापर युग से ही स्थापित है।  पौराणिक धारणा व कथाओं के अनुसार एक बार भयंकर बाढ़ में सिद्धपीठ कालीमठ मंदिर बह गया था जिसमे मंदिर कम स्थापित माँ काली की प्रतिमा भी जलबहाव के साथ बह गयी थी, लेकिन प्रतिमा जलबहाव के साथ वर्तमान धारी नामक स्थान पर एक चट्टान पर जा सटी।  जिसके बाद धारो गांव के लोगों को धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी कि उनकी प्रतिमा को इसी स्थान पर स्थापित किया जाए। जिसके बाद गांव वालों ने माता के मंदिर की स्थापना नदी के बीचों बीच उसी चट्टान पर कर दिया था।  तब से ही उस स्थान को धारी देवी मंदिर के रूप में जाने जाने लगा था।  

 

यह मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले के कलयासौर नामक स्थान पर स्थित है , सिद्धपीठ कालीमठ से इस मंदिर का सम्बन्ध होने का यह भी प्रमाण है की यहां मौजूद माँ काली की प्रतिमा आधी यही धड़ से उप्पर की है जबकि आधी प्रतिमा कालीमठ में ही है। जिससे की माँ मैठाणा के नाम से पूजा जाता है।  

 

 

धारी देवी मंदिर सदियों से आस्था और चमत्कार का केंद्र बना रहा है जिसके चलते अनेकों लोककथाएं और मान्यताने प्रचलित हैं एक कथा के अनुसार माँ धारी सात भाई के साथ एक मात्रा बहन थी, इसके बावजूद भी उनके भाई उन्हें पसंद नहीं करते थे क्यूंकि वे सांवली थी , जिसके बाद कुछ समय बाद जब वे मात्रा सात वरह की थी तो उनके भाइयों को पता चला की उनके ग्रह भाइयों के लिए शुभ नहीं है जिसके बाद उनके मन में माँ धारी के प्रति और भी अलगाव हो गया था।  धीरे धीरे समय बीतता गया लेकिन इसी बीच धारी देवी के पांचों भाइयों की मृत्यु हो जाती है जिससे दो अन्य भाई अत्यधिक भयभीत हो जाते हैं और माँ धारी को इस के लिए जिम्मेदार मानते हैं , भी और क्रोध में आकर वे माँ धारी को मरने का निर्णय लेते हैं। 

 

कन्या स्वरुप में विराजित हैं माँ Dhari Devi

 

जब माता 13 वर्ष की हो जाती हैं तो उनके दोनों भाई छल से माँ धारी को मर देते हैं , वे माँ धारी के सर को धड़ से अलग कर नदी में प्रवाहित  कर देते हैं , इस कन्या का कटा हुआ सर बहते बहते श्रीनगर के पास कल्यासौड़ पर जा पहुंचा। जब अगली सुबह को एक ग्रामीण नदी में पानी भरने जाता है तो वह देखता है की कोई कन्या नदी के बीचों बीच एक चट्टान पर है।  वह उस कन्या को बचाने का मन बनता है लेकिन अत्यधिक पानी के भाव में वह ऐसा नहीं कर पता है और स्वयं के बह जाने के डर से नहीं जाता है , वह वापस जाने को ही होता है की उस कन्या के कटे हुवे सर से आवाज आती यह की तू मेरे पास आने के लिए जहां जहां कदम रहेगा में उस स्थान को सीडी में बदल दूंगी।  इसके बाद वह व्यक्ति जिस जिस स्थान पर कदम रखता है वह सीडी में बदल जाती है और वह व्यक्ति कन्या के पास जा पहुंचता है लेकिन जैसे ही वह उस कन्या को उठा है तो डर जाता है क्यूंकि वह तो मात्र कन्या का सर था।  

 

व्यक्ति को भयभीत देख उस सर से आवाज आती है की तो घबरा मत में देवीय रूप में हूँ , मुझे किसी पवित्र साफ़ स्थान पर स्थापित कर दे।  

 

वह व्यक्ति ऐसा ही करता है और तब से ही इस स्थान पर देवी धारी को पूजा जाता रहा है।  

 

माँ धारी देवी से जुडी ऐसी अनेकों कहानियाँ सुनने को मिल जाती हैं जब भक्त को संकट में देख माता स्वयं उसके साथ खड़ी हुई हैं।  

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