Table of Contents
Amazing Uttarakhand film facts
क्या आप उत्तराखंड से हैं ? नहीं मुझे आपके बोलने , खाने पहने और रहने के तरिके में कोई इंट्रेस्ट नहीं है , में तो बस ये जानना चाहता हूँ की अपने अब तक कितनी गढ़वाली मूवीज देखी है।
क्या आप जानते हैं की गढ़वाल की पहली फिल्म कौन सी थी , घरजवैं देखने के लिए गांव के गांव से भीड़ क्यों उमड़ पड़ी थी , रैबार के मुख्य कास्ट कौन कौन थे या Chakrachaal कब रिलीज हुई थी, नेगी दा को किस गीत से सबसे अधिक लोकप्रियता मिली थी ?
अगर नहीं जानते तो बने रहिये ऐसे ही इंट्रेस्टिंग फैक्ट्स के लिए।
पहली गढ़वाली फिल्म ( First garhwali film ) – Jagwal
पहली Garhwali Film Jagwal 4 मई 1983 को दिल्ली के मालवंकर ऑडिटोरियम में रिलीज हुई थी जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे ,इस फिल्म के लेखक, निर्माता पारासर गौर इसे 1975 में ही बंनाने चाहते थे लेकिन बजट की कमी के चलते वो ऐसा नहीं कर पाए थे, जग्वाल की अनुमानित लागत उस वक्त लगभग साढ़े आठ लाख थी। फिल्म टिकट की कीमत मात्र पांच रुपये रखी थी लेकिन देखने वालों की इतनी भीड़ थी की आडिटोरियम के बाहर इन्हें बीस से सौ रुपये तक ब्लैक में बेचा जा रहा था आप सोच सकते हैं वैसे आपको बता दूँ जग्वाल ही उत्तराखंड की भी पहली फिल्म थी। इस फिल्म में मुख्य किरदार या हीरो की भूमिका में पारेश्वर गौर और रमेश मंदौलिया को देखा गया जबकि नायिका की भूमिका में कुसुम बिष्ट थीं।
अगर इस फिल्म की कहानी की बात करें तो यह एक युवती इंदु की कहानी के इर्द-गिर्द घूमती है। कहानी में इस युवती को अपने पति बीरु के लिए सात साल इंतजार करना पड़ा क्योंकि हत्या के आरोप में उसे गिरफ्तार कर सजा सुनाई जाती है यह सब उनकी शादी के कुछ ही समय के बाद होता है। तब उसका पति उसे सलाह देता है कि वह उसके छोटे भाई शेरू से शादी करे या घर से चले जाये । लेकिन वह अपने पति की सलाह का पालन करने से इनकार कर देती है और उसकी प्रतीक्षा करने का फैसला लेती है।
उत्तराखंड की शोले – घरजवैं
जग्वाल की सफलता के बाद अब उत्तराखंडी फिल्म जगत का हौसला बढ़ चूका था जिसके बाद 1985 – 1986 तक रैबार और घरजवैं जैसी शानदार फिल्म्स आयी, आपको बता दें घरजवैं उत्तराखंड की सबसे लोकप्रिय फिल्म मानी जाती है इससे उत्तराखंड की शोले के नाम से भी जाना जाता है , इसके निर्देशक विश्वेश्वर दत्त नौटियाल थे।
यह एक मात्र 35 mm की गढ़वाली फिल्म थी। आप इस फिल्म की लोकप्रियता के बारे में इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं की इसे दिल्ली के संगम सिनेमा हॉल में इसे लगातार 29 हफ्ते तक दिखाया गया था। इस फिल्म में मुख्य किरदार में बलराज नेगी और शांति चतुर्वेदी थीं।
उस वक्त इस फिल्म को बंनाने के लिए लगभग 35 लाख का बजट था। इस फिल्म के गीतों को भी बहुत पसंद किया गया था, इस फिल्म के सभी गीत नरेंद्र सिंह नेगी जी द्वारा गए थे। माना जाता है की इसी फिल्म की वजह से ही हर किसी की जुबान पर नेगी डा के गीत चढ़ने लगे थे।
Uttarakhand Film जगत का सफर
1986 का साल उत्तरखण्डी फिल्म जगत के लिए स्वर्णिम साल था। इसे पहले 1984 में गढ़वाल फिल्म्स के बैनर के तले बनी कभी दु:ख-कभी सुख औसत भी नहीं निकाल पाई थी ,
फिर वर्ष 1987 आया और कुछ नेपाली डब फिल्म प्यारू रुमाल, कौथिग व उदंकार प्रदर्शित हुई लेकिन इनमें से भी कौथिग ही कुछ चल पाई थी। इसके बाद से मानो उत्तरखंड फिल्म जगत का किला कमजोर सा पद गया और एक के बाद एक फिल्म्स कुछ खास नहीं कर पायी। फिर 1990 में गुजराती फिल्म निर्माता किशन पटेल ने रैबार बनांने का निर्णय लिया, लेकिन जबर्दस्त प्रचार के बावजूद भी फिल्म औंधे मुंह गिर गई। 1992 में बंटवारू रिलीज हुई, जिसने कई जगह अच्छा प्रदर्शन किया और डूबते को तिनके का सहारा बनी।
1996 में आयी फिल्म बेटी-ब्वारी भी औसत ही रही फिर 1997 में आई चक्रचाल दर्शकों के बीच कुछ जगह बनांने में कामयाब रही।आपको बता दें इसी वर्ष विश्वेश्वर दत्त नौटियाल ने हिंदी फिल्म हिमालय के आंचल को छ्वटि ब्वारि नाम से गढ़वाली में डब किया। लेकिन यह भी फ्लाप शो ही साबित हुई। 1998 में महावीर नेगी की फिल्म सतमंगल्या कुछ ठीकठाक चली। इसके बाद 2001 में सरोज रावत की फिल्म गढ़रामी-बौराणी ने खूब चर्चाएं तो बटोरी पर कमाई के मामले में यह भी हिट न हो सकी।
2003 में रामपुर तिराहा कांड पर आधारित फिल्म अनुज जोशी के निर्देशन में बड़े बजट के साथ आयी और अच्छी सफलता प्राप्त की। हालाँकि इसके बाद कहीं फिल्मे आयी लेकिन घरजवैं जैसी लोकप्रियता और कमाई नहीं कर पायी जिसके बाद से कोई भी कोई बड़ा निर्माता साहस नहीं जुटा सका लेकिन उत्तराखंड के कलाकारों ने अभी धैर्य नहीं छोड़ा है और नए नए एक्सपेरिमेंट्स के साथ अलग अलग तरिके से उत्तरखंड फिल्म जगत को सवारने पर लगे हैं।
Also Read – TOP 4 Most Beautiful And Secrets Places To Visit In Uttarakhand