वो दिन 16 जून साल 2013 , आसमान में घिरे काले बादल बेहद असमान्य लग रहे थे , 13 जून से ही औसत से अधिक बारिश हो रही थी। अभी शाम के करीब 7:30 ही हुए थे की अचानक एक तेज गडगडाहट के साथ लग रहा था मानो आसमान टूट गया हो। बस कुछ ही सेकंड में, पानी की एक विशाल भयावह लहर बेहद डरावने शोर के साथ बड़े-बड़े पत्थर लिए, मात्र 15 मिनट से भी कम समय में, हजारों लोग को बहा ले गयी थी। यह आपदा इतनी भयावह थी की इससे 1 लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए, जिनमे से लगभग दस हजार लोगो ने अपनी जान गवई थी। जबकि 4 हजार से अधिक लोगो का अभी तक कोई सुराग नहीं मिला है।
आज हम बात करने वाले हैं 2013 में आयी इस भयावह Kedarnath Flood से जुड़े तथ्यों के बारे में।
हर साल हजारों की संख्या में उत्तराखंड में तीर्थ यात्री पहुंचते हैं , छोटा चार धाम के नाम से जाने जाने वाले Gangotri, Yamunotri, Kedarnath and Badrinath धाम हिन्दुओं की आस्था के महत्वपूर्ण केंद्र रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 16 जून 2013 के उस विनाशक दिन को केदार घाटी में करीब 26,000 लोग मौजूद थे , जबकि करीब 40 हजार लोग उस दिन दर्शन कर केदार घाटी से बद्रीनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री और हेमकुंट साहिब की ओर निकले थे। यानि की उस दिन अगर वहां ये लोग भी रुके होते तो इस त्रासदी का रूप और भी भयावह और विनाशकारी हो सकता था। यह आंकड़ा तो बस सरकारी फाइलों में है, आँखों देखि बताने वाले लोग इसे इससे कहीं अधिक भयावह और विनाशकारी बताते हैं।
Kedarnath tragedy के कारण
Kedarnath tragedy के कारणों की बात करें तो भिन्न भिन्न लोगो के भिन्न भिन्न मत हैं कोई इसे धार्मिक आधार पर समझता है तो कोई मानवीय गलतियों का अंजाम बताता है , लेकिन वैज्ञानिकों की गहरी रीसर्च के बाद मालूम हुआ की केदारनाथ मंदिर से 3 किमी की ऊंचाई पर स्थित चोराबाड़ी झील जिसे गांधी सरोवर झील के नाम से जाना जाता है, में अप्रत्याशित glacier burst के कारण जमा हुए पानी के कारण Kedarnath Flood आया था।
वहीं धार्मिक आस्था रखने वाले इसे 330 मेगावाट श्रीनगर जल विद्युत परियोजना के कारण हिमालय की धात्री धारी देवी के मंदिर के साथ छेड़छाड़ करने का अंजाम बताते हैं। जबकि पर्यावरण प्रेमी और सामाजिक सरोकारों से जुड़े लोग इसे सरकारों की लापरवाही का नतीजा मानते हैं, वे इस बाबत तर्क देते हैं की वर्ष 2000 से 2010 तक केदार घाटी के आसपास लगभग 45 बांध बनाये गए जबकि 119 अन्य बांधों को बनाये जाने की योजना थी , इसके अलावा पहाड़ी क्षेत्रो में विकास के नाम पर अंधाधुंध निर्माण कार्य करने दिए गए।
अगर भारतीय सेना नहीं होती तो 90 हजार लोग मारे जाते : world’s largest air rescue operation
16 व 17 जून की रातें वो लोग कभी नहीं भूल पाएंगे जिन्होंने इस आपदा को झेला था , 13 जून की सुबह से ही मानसून ने काल का रूप ले लिया था वह रुक रुक कर विभिन्न हिमालयी इलाकों में अपना असर दिखा रहा था , लेकिन किसी ने भी ये नहीं सोचा होगा की 16 की जून की रात आने तक यह इतना विकराल हो जायेगा।
जीवनदायनी भागीरथी, अलकनंदा और मंदाकिनी मानो आज जीवननाशनी का रूप ले चूँकि थी , वे अपने चरम उफान पर थीं जो कुछ उनके रास्ते में आता सब बहा ले जाती।
9 नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 लिंक रोड, 86 से अधिक मोटर पुल और 172 बड़े- छोटे पुल पूरी तरह से तबाह हो चुके थे , हजारों घोड़े खचर और मवेशी , 4000 हजार से अधिक घर, मकान दुकान और होटल्स बर्बाद हो चुके थे।
लेकिन इन सबसे अधिक चिंता तो, उन 1 लाख के करीब लोगों की थी जो इस आपदा से बुरी तरह प्रभावित हो कर मौत के मुहाने पर खड़े थे।
न कोई सम्पर्क था न कोई सहारा , कोई अपने परिवार से बिछुड़ गया, तो कोई मानसिक संतुलन ही खो बैठा था।
17 जून को सेना के हेलीकॉप्टरों से केदारनाथ क्षेत्र की हवाई निरक्षण किया जाता है जिसके बाद अगले दिन इन सुबह सुबह सेना की एक टुकड़ी को केदारनाथ पहुंचाया जाता है और ऑपरेशन गंगा प्रहार के तहत 5000 सैनिकों की तैनाती राहत और बचाव कार्य के लिए कर दी जाती है। साथ ही भारतीय वायु सेना (IAF) के हेलीकॉप्टर MI-17 सहित मध्यम लिफ्ट हेलीकाप्टरों को जॉलीग्रांट हेलीपैड, देहरादून पहुंचाया गया।
17 और 18 जून को भी मौसम कुछ ठीक नहीं रहा और रुक रुक कर बारिश होती रही जिसके चलते सर्च ऑपरेशन में बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था।
जिसके बाद 19 जून को भारतीय सेना ने ऑपरेशन गंगा प्रहार को ऑपरेशन सूर्य होप में अपग्रेड करते हुवे प्रभावित क्षेत्र में सेना की ताकत को बड़ा दिया था। इस ऑपरेशन को Army’s disaster response units जिसमे की infantry battalions, signals regiment, engineer regiments, advance dressing stations और medical units,के साथ साथ logistic and supply assets, special forces, specialized mountain troops, paratroopers, और army aviation corps के 13 helicopters को शामिल किया गया था।
बाद में इस ऑपरेशन में शामिल विमानों की कुल संख्या 83 की जाती है जिनमे से IAF-45, Army-13, स्टेट गवर्नमेंट द्वारा रखे गए civil helicopters- 25 का प्रयोग किया जाता है। इन विमानों और helicopters के लिए यहां खराब मौसम और कोहरे में ऑपरेशन को अंजाम देना किसी युद्ध लड़ने जैसा ही अनुभव था।
25 जून को खराब मौसम के बावजूद राहत और बचाव कार्य में जुटे भारतीय वायु सेना का एक एमआई 17, हेलीकॉप्टर, खराब दृश्यता के कारण एक संकीर्ण घाटी में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस घटना में सभी 20 , 5 IAF, 6 ITBP, और 9 NDRF के जवानो ने अपनी जान गवाईं।
लेकिन इसके बावजूद भारतीय सेनाओं ने अपना ओप्रशन नहीं रोका और लगातार राहत और बचाव कार्य में जुटे रहे और 28 जुलाई सेना ने पुष्टि की है कि केदारनाथ में फंसे सभी लोगों को निकाल लिया गया है, इस rescue operation को one of the world’s largest air rescue operation माना जाता है।
सरकारी आकड़ों की माने तो इस घटना में मरने वालों की संख्या 580 थी, जबकि 5,748 लापता हैं वहीं कुल 108,653 लोगों को हवाई और पैदल मार्ग से रेस्क्यू कर लिया गया था ।
सेना की भरकस कोशिश के बाद हजारों जाने तो बचा ली गयी लेकिन अब सवाल था केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य का , आखिर कैसे 12,000 फ़ीट की ऊंचाई पर माइनस जीरो डिग्री से भी काम तापमान में एक बिलकुल तबाह हो चुके स्थान का पुनर्निर्माण कार्य कैसे होगा और कौन करेगा।
सरकार के लिए यह कार्य बेहद मुश्किल था क्यूंकि किसी भी सरकारी एजेंसी के पास इस कार्य को करने के लिए कौशल या विशेषज्ञता नहीं थी। तब ऐसे समय में कर्नल अजय कोठियाल जो की तब नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (एनआईएम) के डायरेक्टर के पद पर थे ,ने सरकार से इस कार्य की जिम्मेदारी मांगी, यहां आपको यह जानना चाहिए की वास्तव में, एनआईएम के स्वयंसेवक त्रासदी के समय भी सबसे पहले राहत और बचाव कार्य में जुटने वालों में से एक थे, एनआईएम के स्वयंसेवकों ने सैकड़ों लोगों की जान बचाई और बचाव और पुनर्वास कार्य में मदद की।
11 March 2014 को सरकार ने आधिकारिक तौर पर केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य की जिम्मदारी कर्नल अजय कोठियाल के नेतृत्व में नीम सोंफ दी। अजय कोठियाल ने 300 प्रशिक्षित पुरुषों की एक टीम के साथ केदारनाथ शहर के पुनर्निर्माण के लिए दिन-रात एक कर दिया , और रामबाड़ा से केदारनाथ मंदिर के बीच महत्वपूर्ण मार्ग का पुनर्निर्माण कार्य सफलता पूर्वक पूरा किया।
आखिर कैसे इतनी ऊंचाई पर भी अजय कोठियाल की टीम ने इस रिस्क से भरे ओप्रशन को अंजाम दे दिया। क्या वजह थी की कर्नल अजय कोठियाल कहीं रातों सो नहीं पाए और मात्र 300 लोगो ने कैसे केदारनाथ पुनर्निर्माण कार्य को अंजाम दे दिया।।। जानने के लिए बने रहिये अगले पार्ट में हम इन्ही सवालों के जवाब जानेंगे ……….
Also read –
रेणी के chipko andolan को sunderlal bahuguna ने कैसे वैश्विक आंदोलन बना दिया