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Home indian mythology

Rudraprayag : Center of religious faith of Hindus ( रुद्रप्रयाग : हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का केंद्र )

Admin by Admin
April 21, 2022
in indian mythology, Uttarakhand
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 उत्तराखंड राज्य के 13 जिलों में से एक रुद्रप्रयाग जिला समुद्र तल से 895 मीटर की औसत ऊंचाई पर स्थित है, Rudraprayag जिले की स्थापना 16 सितंबर 1997 को हुए थी, जिले में अगस्तमुनी और उखीमठ ब्लॉक को पूर्ण रूप से जबकि पोखरी एवं कर्णप्रयाग ब्लॉक का कुछ हिस्सा चमोली जिले से लिया गया था, इसके अलावा जखोली और किर्तीनगर ब्लॉक का हिस्सा टिहरी जिले व खिरसू ब्लॉक का हिस्सा पौडी जिले से लिया गया था। जिले का नामकरण रुद्रप्रयाग शहर के नाम पर किया गया है जो की अलकनन्दा और मंदाकिनी दो नदियों के संगम पर स्थित है। प्राचीन काल से ही रुद्रप्रयाग क्षेत्र का अत्यधिक धार्मिक महत्व बताया जाता है, बाबा केदार का धाम केदारनाथ मंदिर भी रुद्रप्रयाग जिले में ही स्थित है जो की हिन्दुओं की धार्मिक आस्था का प्रमुख केंद्र है।

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Table of Contents

  • 2011 की जनगणना के आधार पर रुद्रप्रयाग जिले से सम्बंधित आंकड़े निम्न प्रकार हैं (Based on the 2011 census, the data related to the Rudraprayag district are as follows ) –
  • रुद्रप्रयाग शहर : संक्षिप्त विवरण ( Rudraprayag City: Brief Description ) –
  • रुद्रप्रयाग का धार्मिक महत्व ( Religious importance of Rudraprayag )- 
  • रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख मंदिर एवं धार्मिक केंद्र ( Temples in Rudraprayag district )-
    • केदारनाथ मंदिर ( Kedarnath Temple )–
    • कार्तिक स्वामी मंदिर ( Karthik Swami Temple ) –
    • कालीमठ मंदिर ( Kalimath Temple ) –
    • त्रियुगीनारायण मंदिर ( Triyuginarayan Temple ) –
    • तुंगनाथ मंदिर ( Tungnath Temple )  –
    • इन्द्राणी मनसा देवी (इन्द्रासनी देवी) मंदिर ( Indrani Mansa Devi (Indrasani Devi) Temple ) –
  • रुद्रप्रयाग कैसे पहुँचे ( How to reach Rudraprayag ) –
    • हवाई मार्ग द्वारा ( By Air ) :
    • रेल मार्ग द्वारा ( By Rail ) :
    • सड़क मार्ग द्वारा ( By Road ) –
  • रुद्रप्रयाग से प्रमुख स्थानों की सड़क मार्ग द्वारा दूरियां ( Distance from Rudraprayag to major places by road ) –

2011 की जनगणना के आधार पर रुद्रप्रयाग जिले से सम्बंधित आंकड़े निम्न प्रकार हैं (Based on the 2011 census, the data related to the Rudraprayag district are as follows ) –

  • 2011 की जनगणना के आधार पर रुद्रप्रयाग जिले की कुल जनसँख्या – 242.29 हजार
  • 2011 की जनगणना के आधार पर रुद्रप्रयाग जिले में कुल जनसँख्या (पुरुष) – 114.59 हजार
  • 2011 की जनगणना के आधार पर रुद्रप्रयाग जिले में कुल जनसँख्या (महिलाएं) – 127.7 हजार
  • 2011 की जनगणना के आधार पर रुद्रप्रयाग जिले में कुल जनसँख्या (ग्रामीण) – 223.29 हजार
  • 2011 की जनगणना के आधार पर रुद्रप्रयाग जिले में कुल जनसँख्या (शहरी) – 18.1 हजार
  • रुद्रप्रयाग जिले में कुल तहसीलों की सँख्या – 4
  • रुद्रप्रयाग जिले की तहसीलों के नाम – रुद्रप्रयाग, जखोली, उखीमठ, बसुकेदार
  • रुद्रप्रयाग जिले में कुल ब्लॉकों की सँख्या- 3
  • रुद्रप्रयाग जिले के ब्लॉकों के नाम – रुद्रप्रयाग, जखोली, उखीमठ
  • रुद्रप्रयाग जिले का कुल क्षेत्रफल – 1,984 वर्ग मीटर
  • 2011 की जनगणना के आधार पर रुद्रप्रयाग जिले में कुल ग्राम पंचायत की सँख्या- 339
  • 2011 की जनगणना के आधार पर रुद्रप्रयाग जिले की साक्षरता दर – 81.30 प्रतिशत

रुद्रप्रयाग शहर : संक्षिप्त विवरण ( Rudraprayag City: Brief Description ) –

Rudraprayag शहर की भौगोलिक स्थिति की बात करें तो रुद्रप्रयाग को प्राकृतिक सौन्दर्य का उपहार प्राप्त है, हिमालय की तलहटी में स्थित रुद्रप्रयाग, अलकनन्दा और मंदाकिनी दो नदियों के संगम पर स्थित है।

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रुद्रप्रयाग का धार्मिक महत्व ( Religious importance of Rudraprayag )- 

स्कन्दपुराण केदारखंड में इस बात का वर्णन पाया जाता है की द्वापर युग में महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवो द्वारा कौरव भ्रातृहत्या हत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। जिसके लिए पांडवों को भगवान शिव का आशीर्वाद चाहिए था। लेकिन शिव पांडवों से रुष्ट थे। इस कारण जब पांडव काशी पहुंचे तो उन्हें भगवान शिव काशी नहीं मिले।  तब वे शिव को खोजते खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। परन्तु फिर भी भगवान शंकर ने पांडवों को दर्शन दिए और अंतध्र्यान होकर केदार में जा बसे। परन्तु पांडव भी पक्के मन से आये थे वे उनका पीछा करते-करते केदार तक जा पहुंचे और इसी स्थान से पांडव ने स्वर्गारोहिणी के द्वारा स्वर्ग को प्रस्थान किया |

वही एक अन्य प्रसंग में रुद्रप्रयाग में महर्षि नारद ने भगवान शिव की एक पाँव पर खड़े होकर उपासना की थी जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने महर्षि नारद को रूद्र रूप में यहां दर्शन दिए और महर्षि नारद को भगवान शिव ने संगीत की शिक्षा दी व पुरुस्कार स्वरुप वीणा भेंट कर। माना जाता है इसी कारण ही इस जगह को “रुद्रप्रयाग” कहा जाने लगा।

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रुद्रप्रयाग जिले के प्रमुख मंदिर एवं धार्मिक केंद्र ( Temples in Rudraprayag district )-

भगवान शिव का नाम जिस शहर के नाम में हो वह स्वाभाविक रूप से ही आध्यात्म और धार्मिक आस्था का केंद्र होगा।  भगवान केदारनाथ, रुद्रनाथ, कोटेश्वर, ओंकारेश्वर, तुंगनाथ, मदमहेश्वर भगवान शिव के स्वरुप यहां विराजमान है तो वहीं विभिन्न देवी-देवताओं का आशीष स्वरुप भी इस पवन भूमि को प्राप्त है।

केदारनाथ मंदिर ( Kedarnath Temple )–

शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक केदारनाथ धाम, हिमालय की वादियों में स्थित है, माना जाता है की  केदारनाथ मंदिर का निर्माण प्राचीन काल में पांडवों द्वारा किया गया था बाद में मालवा के राजा भोज ने भी मंदिर निर्माण सम्बन्घित कुछ कार्य करवाए थे , जबकि अघिकतर लोगो का मानना है की 8 वीं शताब्दी में आदिशंकराचार्य ने मंदिर का आज का मौजूदा स्वरूप बनवाया था।  केदारनाथ धाम के कपाट शीत काल में 6  माह के लिए बंद कर दिए जाते हैं इस दौरान 6 माह तक मंदिर में अखंड जोत जलती रहती है।

कार्तिक स्वामी मंदिर ( Karthik Swami Temple ) –

प्राकृतिक सुंदरता और हिमालय की गोद  में  क्रोंच पर्वत पर स्थित भगवान शिव के पुत्र भगवान कार्तिके का यह मंदिर रुद्रप्रयाग – पोखरी मार्ग पर कनक चौरी गाँव से 3 कि.मी. पैदल ट्रेक पर है , माना जाता है की यह उत्तर भारत में भगवान कार्तिके का एक मात्र मंदिर है, धार्मिक मान्यतानों के आधार पर माना जाता है की यहां भगवान कार्तिके निर्वाण रुप में तपस्यारत हैं। प्रसंग के अनुसार जब वे माता-पिता से नाराज हो गए थे तो उन्होंने अपने शरीर का मांस माता पार्वती और खून पिता शिव को सौंप दिया और निर्वाण रूप में तपस्या के लिए क्रोंच पर्वत पहुंच गए। दक्षिण भारत में भगवान कार्तिकेय को भगवान मुरगन के रूप में पूजा जाता है।

कालीमठ मंदिर ( Kalimath Temple ) –

रुद्रप्रयाग जिले के उखीमठ ब्लॉक में माँ काली का यह सिद्धपीठ है , इस मंदिर का उल्लेख स्कन्द पुराण के केदारखंड के 62वें अध्याय में भी मिलता है, मान्यता है की माँ काली ने इसी क्षेत्र में ही शुंभ-निशुंभ नाम के असुरों का वध किया था।  मंदिर से 8 km की दुरी पर  कालीशिला स्थित है जहां माँ काली के पदचिन्ह मौजूद हैं , कालीमठ मंदिर में माँ काली के साथ साथ माँ लक्ष्मी व माँ सरस्वती के भी मंदिर है।  इस मंदिर में माँ काली की मूर्ति नहीं है बल्कि एक कुंड की पूजा की जाती है।

त्रियुगीनारायण मंदिर ( Triyuginarayan Temple ) –

भगवान शिव और देवी पार्वती के विवाह स्थल के रूप में प्रसिद्ध यह भगवान विष्णु का मंदिर उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के त्रिजुगीनरायण गांव में स्थित है इस मंदिर की वास्तुकला शैली केदारनाथ मंदिर के जैसी ही है जो इसके प्राचीन होने का प्रमाण भी है। पौराणिक कथा के अनुसार, त्रियुगिनरायण पौराणिक हिमवत की राजधानी हुवा करती थी और जहां भगवान शिव ने सतयुग में देवी पार्वती से विवाह किया था। शिव-पार्वती के विवाह के समय की दिव्य अग्नि आज भी हवन कुंड में जलती हैं। माना जाता है की यह कुंड तीन युगों से यंहा पर है , इसलिए इसे त्रियुगीनारायण के नाम से जाना जाता है। यहां पर तीन अन्य कुंड, रुद्रकुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मकुंड भी हैं। इन कुंडों का पानी सरस्वती कुंड से बहता है जो कि  भगवान विष्णु के नाभि से उगता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर बच्चों की चाह रखने वाली महिलाएं स्नान करती है और विश्वास है कि इससे उनका बांझपन दूर हो जाता है ।

तुंगनाथ मंदिर ( Tungnath Temple )  –

पांच केदारों में से एक तुंगनाथ महादेव का मंदिर, सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव मंदिर है , माना जाता है की इस मंदिर को पांडवों में स्थापित किया था, भारी बर्फबरी के कारण यह मंदिर नवंबर और मार्च के बीच में बंद रहता है। तुंगनाथ अपने धार्मिक महत्त्व के साथ ही प्राकृतिक सुंदरता के लिए भी जाना जाता है , तुंगनाथ मंदिर में भगवान शिव के बाँहों (हाथ) की पूजा होती है।

इन्द्राणी मनसा देवी (इन्द्रासनी देवी) मंदिर ( Indrani Mansa Devi (Indrasani Devi) Temple ) –

इन्द्राणी मनसा देवी या इन्द्रासनी देवी का मंदिर रुद्रप्रयाग जनपद के कंडाली गाँव में है, इस प्राचीन मंदिर का वर्णन स्कान्दपुराण, देवी भागवत, और केदारखण्ड में मिलता है।  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन्द्रासनी देवी महाऋषि कश्यप की मानसी पुत्री थीं। यह मंदिर नागों की देवी मनसा माता को समर्पित है, आज भी इस क्षेत्र में किसी को यदि सांप काट जाए तो उसे मंदिर में लाया जाता है तो वह माता की कृपा से ठीक हो जाता है। यहां पर हर 12 साल में विशाल यज्ञ का आयोजन होता है जिसमे दूर दूर से भक्त माता क दर्शन करने पहुंचते हैं।

इन सभी मंदिरों के अलावा मदमहेश्वर मंदिर, ओंकारेश्वर मंदिर, कोटेश्वर मंदिर, रुद्रनाथ मंदिर , मठियाणा देवी मंदिर और भूमियाल देवी देवता , क्षेत्रपाल व अनेकों देवी देवताओं का आशीष इस पवन भूमि को प्राप्त है।

रुद्रप्रयाग कैसे पहुँचे ( How to reach Rudraprayag ) –

रुद्रप्रयाग पहुंचने के लिए आप  अपनी सहूलियत के अनुसार हवाई , रेल या सड़क मार्ग द्वारा पहुंच सकते हैं।

हवाई मार्ग द्वारा ( By Air ) :

रुद्रप्रयाग बाय एयर पहुंचने के लिए निकटवर्ती डोमेस्टिक एयरपोर्ट हवाई अड्डा जोली ग्रांट एयर पोर्ट देहरादून (Jolly Grant Airport (IATA: DED, ICAO: VIDN)) है जो की160 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। जबकि निकटतम अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, नई दिल्ली है।

रेल मार्ग द्वारा ( By Rail ) :

रुद्रप्रयाग पहुंचने के लिए निकटवर्ती रेल हेड ऋषिकेश है, जो की 140 किलोमीटर की दूरी पर है इसके अतरिक्त आप विभिन्न शहरों जैसे देहरादून, हरिद्वार, काठगोदाम व अन्य राज्यों के निकटवर्ती रेलवे स्टेशन से पहुंच सकते हैं।

सड़क मार्ग द्वारा ( By Road ) –

सड़क मार्ग द्वारा रुद्रप्रयाग पहुंचने के लिए लिए आप विभिन्न रूट्स का प्रयोग कर सकते हैं, रुदप्रयाग चारों ओर से  सड़कों से जुड़ा हुआ है।

रुद्रप्रयाग से प्रमुख स्थानों की सड़क मार्ग द्वारा दूरियां ( Distance from Rudraprayag to major places by road ) –

  • रुद्रप्रयाग से केदारनाथ की दूरी – 50.7 kms
  • ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग की दूरी – 140 Kms
  • देहरादून से रुद्रप्रयाग की दूरी – 177.7 kms
  • हरिद्वार से रुद्रप्रयाग की दूरी – 160 Kms
  • टिहरी से रुद्रप्रयाग की दूरी –  112 Kms
  • पौड़ी से रुद्रप्रयाग की दूरी –  62 Kms
  • दिल्ली से रुद्रप्रयाग की दूरी – 398.6 Kms
  • मुंबई से रुद्रप्रयाग की दूरी – 1,787.0 Kms
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