१.भारत के चारधाम बद्रीनाथ धाम, द्वारकापुरी धाम , जग्गन्नाथपुरी धाम, रामेश्वरम धाम है जिनमे से बद्रीनाथ धाम उत्तराखंड के चमोली जनपद में है, बदरीनाथ मंदिर को बदरीनारायण मंदिर भी कहा जाता है। जो अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बद्रीनाथ को समर्पित है।
२.मान्यता है कि बद्रीनाथ में भगवान शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी। वह स्थान जिसे आज ब्रह्म कपाल के नाम से जाना जाता एक ऊंची शिला है जहां पितरों का तर्पण श्राद्घ किया जाता है। माना जाता है कि यहां श्राद्घ करने से पितरों को मुक्ति मिलती है।
३. बद्रीनाथ तीर्थ का नाम बद्रीनाथ कैसे पड़ा यह अपने आप में एक रोचक कथा है। कहते हैं एक बार देवी लक्ष्मी जब भगवान विष्णु से रूठ कर मायके चली गई तब भगवान विष्णु यहां आकर तपस्या करने लगे। जब देवी लक्ष्मी की नाराजगी दूर हुई तो वह भगवान विष्णु को ढूंढते हुए यहां आई। उस समय यहां बदरी का वन यानी बेड़ फल का जंगल था। बदरी के वन में बैठकर भगवान ने तपस्या की थी इसलिए देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को बद्रीनाथ नाम दिया।
४. बद्रीनाथ के पुजारी शंकराचार्य के वंशज होते हैं, जो रावल कहलाते हैं। यह जब तक रावल के पद पर रहते हैं इन्हें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है। रावल जी मूल रूप से दक्षिण भारत के होते हैं
५. बद्रीनाथ धाम दो पर्वतों नर नारायण पर्वत बसा है। कहते हैं यहां पर भगवान विष्णु के अंश नर और नारायण ने तपस्या की थी। पौराणिक ग्रंथों के आधार पर खा जाता है की नर अगले जन्म में अर्जुन और नारायण श्री कृष्ण हुए थे।
६. एक मान्यता यह है की जब नर और नारायण पर्वत एक दूसरे में मिल जायेंगे तो बद्रीनाथ भगवान , भविष्य बद्री में अपना नया थान ग्रहण कर लेंगे
७. उत्तराखंड में पांच बद्री की मान्यता भी विभिन्न पौराणिक कथाओं से जुडी हैं पांच बद्री निम्न हैं
१.आदि बद्री २. बद्रीनाथ ३. भविष्य बद्री ४. वृद्धा बद्री ५.योगध्यान बद्री